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कहा एक दिन दाल बहन ने,
छुट्टी आज मनाऊँगी।
किसी थाल में चावल के संग,
आज नहीं मैं जाऊँगी।
चावल बोला, " अरी निगोड़ी,
क्यों घमंड इतना करती,
बोली है तरकारी मुझसे,
हर दम साथ निभाऊंगी। "
क्यों डरते हो चावल भैया,
मैं तेरी हमराही हूँ,
बहन कढ़ी भी यह बोली है,
काम तुम्हारे आऊँगी। "
कभी किसी के बिना जगत का,
काम नहीं रुकता भाई।
एक छोड़ दे साथ अगर तो,
मदद दूसरे से आई।
छुट्टी आज मनाऊँगी।
किसी थाल में चावल के संग,
आज नहीं मैं जाऊँगी।
चावल बोला, " अरी निगोड़ी,
क्यों घमंड इतना करती,
बोली है तरकारी मुझसे,
हर दम साथ निभाऊंगी। "
क्यों डरते हो चावल भैया,
मैं तेरी हमराही हूँ,
बहन कढ़ी भी यह बोली है,
काम तुम्हारे आऊँगी। "
कभी किसी के बिना जगत का,
काम नहीं रुकता भाई।
एक छोड़ दे साथ अगर तो,
मदद दूसरे से आई।
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