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इन्द्रधनुष / श्रीनाथ सिंह

इन्द्रधनुष निकला है कैसा।
कभी न देखा होगा ऐसा।
रंग बिरंगा नया निराला,
पीला लाल बैंगनी काला।
हरा और नारंगी नीला,
चोखा चमकदार चटकीला।
इस दुनिया से आसमान पर,
पुल सा चढ़ा हुआ है सुंदर।
है कतार मोरों की आला,
या बहुरंन्गी मोहन माला।
अटक गया है बादल में या,
सूर्यदेव के रथ का पहिया।
पृथ्वी पर छाई हरियाली,
बहती ठंडी हवा निराली
जरा जरा बूंदें झड़ती हैं,
नदियाँ क्या उमड़ी पड़ती हैं।
इन सबसे बढ़ कर इकला,
वह जो इन्द्रधनुष है निकला।
खड़ा स्वर्ग सा दरवाजा,
तू भी लख रे अम्मा, आ जा।

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