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अच्छे लोगॊं की अच्छाई / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

चिड़ियों के गीतों को सुन्कर,
पत्ते नाचे डाली गाई।
कांव-कांव कौये की सुनकर,
पेड़ों ने कब्बाली गाई।

राग बेसुरे सुनकर कोयल,
मन ही मन में थी भन्नाई।
फिर भी उसके मधुर कंठ से,
कुहू-कुहू स्वर लहरी आई।

अच्छे लोगों में रहती है,
बात-बात में ही अच्छाई।
कभी नहीं करते दुश्मन की,
अपने मुँह से कहीं बुराई।

पेड़ मुफ्त में छाया देते,
फूल फलों की फ़सल उगाई।
बिना दाम के सूरज ने भी,
धूप धरा पर नित फैलाई।

चाँदी जैसी धवल चाँदनी,
चंदा ने नभ से टपकाई।
रुपया पैसा कहाँ लगा कुछ,
बैठे खड़े मुफ्त में पाई।

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