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एक पान का पत्ता / सूर्यकुमार पांडेय

एक पान का पत्ता,
जा पहुँचा कलकत्ता।
पकड़े अपना मत्था,
मिला वहाँ पर कत्था।

आगे मिली सुपारी,
सबने की तैयारी।

पहुँचे फिर सब पूना,
लगा वहाँ पर चूना।

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