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किरण धूप की / सुरेश विमल

लगती है कश्मीरी शॉल
किरण धूप की जाड़े में।

खिले फूल की पंखुड़ियों से
खुशबू की कविता सुनती
बैठ पहाड़ों की गोदी में
कोहरे की-की रुई धुनती।

चलती है हंसों की चाल
किरण धूप की जाड़े में।

ठिठुरे पंखों में भर देती
ताकत फिर से उड़ने की
उपजाती मन में वानर के
बात अटारी चढ़ने की।

मिलती है चुन-चुन के गाल
किरण धूप की जाड़े में।

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