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कंचे मेरे / सुरेश विमल

गिन कर रखे थे पूरे दस
घंटे मेरे कहाँ गए।

देखा दीदी के बस्ते को
भैया का गुल्लक खोला
खोज लिया चूहे के बिल को
उल्टा सब्जी का झोला।

किसने हाथ लगाया इनको
आखिर मेरे बिना कहे।

लाया था मैं नहीं कहीं से
छीन-झपट या चोरी कर
जेब ख़र्च की बचा चवन्नी
स्वयं खरीदे झोली भर।

घिसा पिटा था नहीं एक भी
सब के सब थे टंच नये।

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