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अपना रिक्शेवाला / निशान्त जैन

रुकता न थकता है कभी, न काम से जी वो चुराए,
मन में हरदम गूँज लगन की, गाने श्रम के गाए।

उठते हम जब सोते-जगते, आलस में ही रहते,
लेने हमें पहुँचता हरदम, मोनू-पिंकी कहते।

सवारियों को ढोकर आए, चाहे जितना पसीना,
चिल्ले का जाड़ा हो या हो, जालिम जेठ महीना।

दुःख-सुख जीवन दो पहिए, जाने मन से बात,
हँसता-खिलता चलता जाए, दिन हो या हो रात।

मन में न एक पल भी निराशा, रहता मगन हमेशा,
आशाओं के फूल खिला लो, देता यही संदेशा।

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