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कंधे प‌र‌ न‌दी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

अगर हमारे बस में होता,
नदी उठाकर घर ले आते।

अपने घर के ठीक सामने,
उसको हम हर रोज बहाते।

कूद कूद कर उछल उछलकर,
हम मित्रों के साथ नहाते।

कभी तैरते कभी डूबते,
इतराते गाते मस्ताते।

'नदी आ गई' चलो नहाने,
आमंत्रित सबको करवाते।

सभी उपस्थित भद्र जनों का,
नदिया से परिचय करवाते।

अगर हमारे मन में आता,
झटपट नदी पार कर जाते।

खड़े-खड़े उस पार नदी के,
मम्मी मम्मी हम चिल्लाते।

शाम ढले फिर नदी उठाकर,
अपने कंधे पर रखवाते।

लाए जहाँ से थे हम उसको,
जाकर उसे वहीं रख आते।

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