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एक आग का गोला / प्रकाश मनु

अजब-अनोखा सर्कस देखा,
अजब अनोखा सर्कस!

सूँड़ उठाकर हाथी राजा ने दी खूब सलामी,
शेराज फिर लेकर आए एक छाता बादामी।
इक पहिए की साइकिल लेकर दौड़ा सरपट भालू,
बनमानुष ने लपके सारे आलू और कचालू।

एक आग का गोला, कूदा उसमें से एक जोकर,
हाथ बढ़ाकर रोकी उसने झट से चलती मोटर।
सात रंग का जादू बिखरा जब छूटीं फुलझड़ियाँ,
बंदर ने चतुराई से खोलीं दो-दो हथकड़ियाँ।

‘वाह-वाह, क्या कहने!’ बोले ताली दे-दे मुन्ना,
जब भालू ने तीर चलाए लिए धनुष औ’ तरकस!

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