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मुसलमान हो या हिंदू हों,
ईद सभी का है त्यौहार।
मिलकर सबको गले लगाएँ
भूल बैर बस झूमें-गाएँ,
आओ सुखविंदर-रोहित-क्रिस
आओ कविता और रुखसार।
गरम पकौड़े और पकवान
गजब जायके के सामान,
देख सिवइयाँ ललचाए हैं,
बच्चे आदत से लाचार।
‘ईदी’ दी अब्बा ने मुझको
कहा बाँट दो सबमें इसको,
झूलें झूला संग-साथ सब
नहीं खुशी का पारावार।
रोजों में जो गुण हैं सीखें
क्यों न उनको आगे खींचें,
बेमतलब की बात भूलकर
करें द्वेष का बंटाधार।
हिंदू-मुसलिम भाई-भाई
ईद यही संदेशा लाई,
जीने का मतलब सिखलाती
तोड़े मजहब की दीवार।
ईद सभी का है त्यौहार।
मिलकर सबको गले लगाएँ
भूल बैर बस झूमें-गाएँ,
आओ सुखविंदर-रोहित-क्रिस
आओ कविता और रुखसार।
गरम पकौड़े और पकवान
गजब जायके के सामान,
देख सिवइयाँ ललचाए हैं,
बच्चे आदत से लाचार।
‘ईदी’ दी अब्बा ने मुझको
कहा बाँट दो सबमें इसको,
झूलें झूला संग-साथ सब
नहीं खुशी का पारावार।
रोजों में जो गुण हैं सीखें
क्यों न उनको आगे खींचें,
बेमतलब की बात भूलकर
करें द्वेष का बंटाधार।
हिंदू-मुसलिम भाई-भाई
ईद यही संदेशा लाई,
जीने का मतलब सिखलाती
तोड़े मजहब की दीवार।
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