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एक से दस तक / बालकृष्ण गर्ग

एक बज रहा इकतारा,
दो तबले- ‘धितक-धितक’।
तीन गधे गाएँ गाना,
चार रीछ नाचें ‘कत्थक’।
पाँच कूकती हैं कोयल,
छह तितियाते हैं कोयल,
सात स्वरों का है ‘सप्तक’,
आठ पहर सारे होते।
नौ ग्रह अपने ‘ज्योतिष’ के,
इतने ही साहित्यिक रस।
दस अवतार कहे जाते,
और दिशाएँ भी हैं दस।
[रचना: 9 सितंबर 1996]

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