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एक बादल झुका / रमेश तैलंग

एक बादल झुका मेरी छत पर, सुनो,
उस बादल ने कितने रूप धरे
हाँ, सुनो जी सुनो ।

खरगोश बना, वह मोर बना,
वह सिपाही बना, वह चोर बना,
उस चोर से हम सब ख़ूब डरे
हाँ, सुनो जी सुनो ।

उस बादल का चेहरा निराला था,
कहीं नीला, कहीं पूरा काला था,
जिसे देख के आने से धूप डरे
हाँ, सुनो जी सुनो ।

फिर जाने कहाँसे धुआँ-सा हुआ,
उस बादल का चेहरा रुआँसा हुआ,
वह रोया तो बूँदों के फूल झरे
हाँ, सुनो जी सुनो ।

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