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आम पका / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

टपका-टपका अभी सामने,
बीच सड़क पर आम पका।

खेल-खेल में गप्पू के संग,
निकले थे मस्ती करने।
ब्रश मंजन कर निकल पड़े थे,
नगर भ्रमण गश्ती करने।
सड़क किनारे आम वृक्ष था।
खड़ा अदब से झुका हुआ।

छत के कंधे पर सिर रखकर,
पेड़ खड़ा मुस्काता था।
मीठे फल, आ जाओ, खिलाऊँ,
कहकर हमें बुलाता था।
हम पहुँचे तो हमें देखकर
ठिल-ठिल कर वह खूब हंसा।

सिर को हिला हिलाकर उसने,
पके-पके फल टपकाए।
हम बच्चे भी बीन-बीन कर,
ढेर आम घर पर लाए।
गिरते एक आम को मैनें,
अपने हाथों में लपका।

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