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कलम से / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

मेरी कलम, चलो तुम ऐसे,
भूल न होने पावे।
सुन्दर सुन्दर लेख लिखो पर,
देर न होने पावे।
मेरा मन बैचेन हुआ है,
कुछ घंटों का समय मिला है।
जब से सुना परीक्षा होगी,
भय के मारे ह्रदय हिला है।
मेरी सच्ची साथिन है तू,
बड़ा भरोसा तेरा।
निश्चय ही इस अवसर पर तू,
काज करेगी मेरा।
स्याही तुमको पिला रही हूँ,
प्यास बुझेगी तेरी।
ऐसे कठिन समय में लेकिन,
बात बनाना मेरी।
क्षमता तुझमें बड़ी-चड़ी है,
तलवारों की धारों से।
तू चलती जब रुक जाती वे,
करती प्रबल प्रहारो से।
तुझको ही अपने जीवन का,
भार दिये देती हूँ।
ज्ञान-बर्धिनि! सतत प्रेरणा,
सार लिये लेती हूँ।

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