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कमरे के आले-आले में / श्रीप्रसाद

कमरे के आले-आले में, सामान निराले हैं
केतली धरी है कहीं, कहीं पर रक्खे प्याले हैं

जो बड़ा बीच में है आला, उसमें दो गमले हैं
कुछ फौजी वहीं खड़े हैं, जैसे करते हमले हैं
उसके आगे आले में, चार गुजरियाँ बैठी हैं
दो हँसती हैं, दो गुस्साई-सी ऐंठी-ऐंठी हैं
बिल्ली है एक वहीं, पहरे पर कुत्ते काले हैं
कमरे के आले-आले में, सामान निराले हैं

आगे छोटे आले में है, जहाज नीला पीला
लगता है उड़ने को है वह सुंदर-सा चमकीला
बैठे हैं वहीं सेठ मोटे, बैठी हैं सेठानी
लाठी ले झुकी कमर से, वहीं खड़ीं बूढ़ी नानी
खरगोश खड़े हैं, जो बुढ़िया नानी ने पाले हैं
कमरे के आले-आले में, सामान निराले हैं

मैं जो कुछ भी सामान कहीं से, घर में लाता हूँ
खेला करता हूँ उससे मैं, फिर उसे सजाता हूँ
आलों में रख देता हूँ, आले सजते हैं सारे
गुड्डा, गुड्डी, बबुआ, बिल्ली, हाथी, घोड़े प्यारे
ये नाटे-छोटे बब्बू उस लंबे गुड्डे के साले हैं
कमरे के आले-आले में, सामान निराले हैं,

कमरे के आले सजे सभी, जैसे चिड़ियाघर है
ला-लाकर रखे खिलौने, अब घर लगता सुंदर है
कोई आकर देखे, मन सचमुच खुश हो जाएगा
अपना घर स्वयं सजाएगा, सुंदरता लाएगा
देखो वे हाथी, केसी सुंदर झूलें डाले हैं
कमरे के आले-आले में, सामान निराले हैं।

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