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कहाँ बनाए घर गोरैया (कविता) / सुरेश विमल

कहाँ बनाएँ घर गौरैया?

बैठक में जोड़े जो तिनके
दादाजी ने डांट लगाई
भगा दिया अपने कमरे से
भैया को भी दया ना आई।

घुसी रसोई घर में लेकिन
उड़ी धुएँ से डर गोरैया।

लिए चोंच में तिनका बैठी
आंगन की खूंटी पर आकर
लगी मांगने दादी माँ से
जगह जरा-सी गाना गा कर।

देखे कोना-कोना घर का
घुमा घुमा कर सिर गौरैया।

खुले पेड़ पर डर मौसम का
आंधी, ओले का चक्कर
रहे भला कैसे गोरैया
बाज़, चील कौए से बचकर।

सो पाएगी कहाँ चैन से
डरी डरी बाहर गोरैया।

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