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एक बाल कविता / विनय कुमार

बन्दर बोला — हाथी दादा !
मत खाओ तुम इतना ज़्यादा,
खाते हो तुम दस का चारा
वज़न बढ़ गया बहुत तुम्हारा ।

हिला-डुलाकर अपनी काया,
हाथी दादा ने फ़रमाया —
नौ मन चावल, दस मन शक्कर
नाश्ते में जाते हो चटकर,
दस पीपल की टहनी खाकर
सो जाता हूँ पानी पीकर,
इससे जिस दिन कम खाऊँगा
मैं भी बन्दर हो जाऊँगा ।

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