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एक बार की बात, कलम से-
लड़ने लगी दवात,
बोली,'करतब की दुनिया में,
तेरी कौन बिसात?
मेरी रंग-बिरंगी स्याही-
है तेरा सिंगार,
तेरे जीवन को मिलती है,
मुझसे ही रस-धार।
बड़बोली-सी तू करती है,
दो जीभों से बात,
गिनती नहीं किसी को कुछ भी,
करती पैनी घात!
मेरे बल पर बनी हुई है,
तू यों बड़ी दबंग,
मैं चाहू, तो कर दूँ तेरा-
पल में हुलिया तंग।
हँसकर उत्तर दिया कलम ने-
'अरी बावली, देख!
मैंने तेरी स्याही पीकर,
लिखे सुनहरे लेख!
मेल-जोल से ही चलता है,
जग का कारोबार।
मेरे बिना अकेली तू भी,
है बिल्कुल बेकार!
लड़ने लगी दवात,
बोली,'करतब की दुनिया में,
तेरी कौन बिसात?
मेरी रंग-बिरंगी स्याही-
है तेरा सिंगार,
तेरे जीवन को मिलती है,
मुझसे ही रस-धार।
बड़बोली-सी तू करती है,
दो जीभों से बात,
गिनती नहीं किसी को कुछ भी,
करती पैनी घात!
मेरे बल पर बनी हुई है,
तू यों बड़ी दबंग,
मैं चाहू, तो कर दूँ तेरा-
पल में हुलिया तंग।
हँसकर उत्तर दिया कलम ने-
'अरी बावली, देख!
मैंने तेरी स्याही पीकर,
लिखे सुनहरे लेख!
मेल-जोल से ही चलता है,
जग का कारोबार।
मेरे बिना अकेली तू भी,
है बिल्कुल बेकार!
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