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कछुआ आरो खरगोश / दिनेश बाबा

कछुआ आ खरगोस रोॅ बाजी
आज तलुक छै मन में ताजी
के रेफरी, अम्पायर छेलै
के तखनी देखै लेॅ गेलै
कना के दोनो होलै राजी
बात करै छै सब अंदाजी
आबोॅ यहां बताय दिहौं हम
खिस्सा फनु सुनाय दिहौं हम
कहीं रहै कछुआ खरगोस
दोनो छेलै पकिया दोस
कछुआ धीमी चाल के प्रानी
दौड़ै में खरहा तूफानी
चाल जेना तिनसुकिया मेल
उछल कूद कछुआ के खेल
दोनो मिली केॅ बात करतिहौं
गपियाबै में रात करतिहौं
आपनो शान बघारै दोनो
बात सें मतर नैं हारै दोनो
के सेसर छै के छै बीस
यही बात पर होलै ढीस
बात-बात आ हँसी खेल में
प्यार मोहब्बत मेल-मेल में
ताकतवर कछुआ बोललकै
तों नाजुक छैं, मूँ खोललकै
कहीं नै तोरो दम में दम छौ
ताकत भी हमरा सें कम छौ
हाँ हाँ जो नी देखबौ दाबी
बढ़ी चढ़ी केॅ बोल नै आभी
तों जीते नै पार्बै जो जो
आभी दूध मलीदा खो खो
ऐलै गोस्सा खरगोसो केॅ
वें चैलेंज देलक दोसो केॅ
कान खड़ा करी बोलेॅ लगलै
शान पिटारी खोले लगलै
शेखी तों न बघारोॅ एतना
डींग अरे मत मारोॅ एतना
दौड़े के जों बात करै छो
लगे छै तों हे तात डरै छो
हार जती रो शर्त्त लगाबो
हिम्मत के हर पर्त्त लगाबो
जीतेॅ नै पारभो हमरा सें
हारे लिखलो छौं हमरा सें
उमरदराज तों बहुत बड़ा छो,
अब कहिने खामोश खड़ा छो
जना निचिन्त रहै छै कछुआ
मूँ खोली केॅ कहै छै कछुआ
शर्त्तो छौ मंजूर इ तोरोॅ
होतौ मंशा चूर इ तोरोॅ
मंजिल तब होलै निर्धारित
ससा के आँख छेलै विस्फारित
एन्हैं केॅ बाजी लगलै छन में
दौड़ी पड़लै दोनो धुन में
फुरती आरो गति के अपनो
खरहा केॅ अभिमानो छेलै
कछुआ केॅ संयम आ बल के
मतर कि अच्छा ज्ञानो छेलै
दूर पहुँचना, पथ अनजाना
लेकिन रहै समय पर जाना
कछुआ में तेॅ दम रहै बेसी
खरहा में त अहम रहै बेसी
बाजी होकरे हाथ में ऐतै
जेॅ बेसी जी जान लगैतै
कुछ ही पल में खरहा आखिर
दूर बहुत्ते निकली गेलै
घूरी केॅ पाछू देखलक तेॅ
लगलै कछुआ पिछड़ी गेलै
बहुत समय छै हय जानी केॅ
खरहा रूकी केॅ सोचेॅ लगलै
थकलो देही के गरमी ने
चुन-चुन करी केॅ नोचेॅ लगलै
मंजिल तक पहुँचै के पहिनें
हरा घास जब झलकी उठलै
सोचलक, दूर अभी छै कछुआ
चरी लौं, मन ठो ललकी उठलै
जाव तक कछुआ पड़ेॅ दिखाई
करौं पेट भर यहाँ चराई
समय अभी भी नैं होलोॅ छै
चरै छी हम्मे जी भर घास
आबेॅ तेॅ जितने जितलो छी
मन में रहै पूर्ण विश्वास
जीतै के अहसास लेने तब
भिड़लै ससा चरै लेॅ घास
घास चरी सुस्ताय गेलै जब
नींन आँखि में आय गेलै तब
टूटलै नीन, होलै जब होश
धड़फड़ करी उठले खरगोस
जगलै की हड़बड़ाय गेलै उ
कुछ सोची गड़बड़ाय गेलै उ
नीन में मातल जखनी खरहा
जीत-हार सपनाय छेलै
मंजिल पर पहुँची केॅ कछुआ
जीत के जश्न मनाय छेलै
डिंगियल खरहा तेज दौड़ में
कहलक जीती लेभौं होड़ में
तोहें धिमाठा हम्में तेज
तों करिया हम्में अंगरेज
सुतलोॅ रही केॅ उ दिन होकरोॅ
समय बहुत्ते बीती गेलै
कछुआ धीरेॅ-धीरेॅ चली केॅ
रेस के बाजी जीती गेलै

श्रेणियाँ: अंगिका रचना बाल-कविताएँ

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