Featured post

सन् 2068 की हिंदी कक्षा में

बड़ा दुःख,
दुर्भाग्य बड़ा है !
इन कवि का केवल
अभिनन्दन ग्रन्थ प्राप्य है ।
कोई पुस्तक नहीं, किसी पुस्तकागार,
अभिलेखालय में;
और किसी को याद नहीं,
दो-चार पंक्तियाँ भी
इन कवि की ।
कितने नकली, कितने छिछले
और गलत मूल्यों का
होगा युग वह
जिसमें,
जिसके साथ
राष्ट्रपति और
वजीरे आजम
औ’ नेतागण
भारी-भरकम
अपने फोटो
खिचवाने को
लुलुवाते थे,
उनकी कोई
रचना नहीं
ख़रीदा या
बांचा करते
थे-

कहाँ देश-सेवा, समाज-सेवा से
उनको
दम लेने
की फुरसत
होगी-
औ’ उनकी
सेवा लेने
में
और प्रशंसा
और चाटुकारी
उनकी करने
में लिपटी
रहती होगी
जनता सारी
कुछ अपने
मतलब की
बात करा
लेने में
किसे दिशा
दे सकती
होगी
हिंदी की
कविता दयमारी !

Comments