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अपने दुख, संकट, त्रास, प्यास, पीड़ा से
छुट्टी पाने को ?
या पीछा करते किसी भयानक सपने से ?-
संघर्ष नहीं कर सकता है वह, क्योंकि,
जगत से, जीवन से या अपने से?-
जी नहीं ।
अगर इतिहास
राष्ट्र को जकड़ इस तरह लेता है
उसके संघर्षण करने,
हिल-डुल सकने की भी शक्ति
व्यर्थ कर देता है-
छा जाता है अवसाद-अंधेरा
जन-जन के मन प्राणों पर-
म्रियमान जाति यदि नहीं---
एक सबका प्रतिनिधि बन उठे
स्वयं बनकर मशाल
विद्रोह और विश्वास, आग बाक़ी है,
बतला दे-
ऐसी मर्यादा है।
तू अपनी नियति निभाता है,
पालाच, तुझे मेरा प्रणाम,
मेरे स्वजनों, पुरखों,
मेरी बलिदानी परम्पराओं का;
तू आत्मघात कर
दलित राष्ट्र के,
दलित जाति के
नव जीवन का उपोद्घात कर जाता है ।
.
छुट्टी पाने को ?
या पीछा करते किसी भयानक सपने से ?-
संघर्ष नहीं कर सकता है वह, क्योंकि,
जगत से, जीवन से या अपने से?-
जी नहीं ।
अगर इतिहास
राष्ट्र को जकड़ इस तरह लेता है
उसके संघर्षण करने,
हिल-डुल सकने की भी शक्ति
व्यर्थ कर देता है-
छा जाता है अवसाद-अंधेरा
जन-जन के मन प्राणों पर-
म्रियमान जाति यदि नहीं---
एक सबका प्रतिनिधि बन उठे
स्वयं बनकर मशाल
विद्रोह और विश्वास, आग बाक़ी है,
बतला दे-
ऐसी मर्यादा है।
तू अपनी नियति निभाता है,
पालाच, तुझे मेरा प्रणाम,
मेरे स्वजनों, पुरखों,
मेरी बलिदानी परम्पराओं का;
तू आत्मघात कर
दलित राष्ट्र के,
दलित जाति के
नव जीवन का उपोद्घात कर जाता है ।
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Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
जाल समेटा हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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