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प्रेम

भूल नहीं,
शूल नहीं,
चिन्ता की मूल नहीं।
चाल नहीं,
जाल नहीं,
दुर्दिन की माल नहीं ।
पाप नहीं,
शाप नहीं,
संकट-संताप नहीं ।
प्रेम अजर, प्रेम अमर
जो कुछ भी सुंदरतर
जगती में, जीवन में
लाता है मंथन कर,
मंथन से सिहर-सिहर
उठते हैं नारी-नर !

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