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मैं जीवन की हर हल चल से
कुछ पल सुखमय,
अमरण-अक्षय,
चुन लेता हूँ।
मैं जग के हर कोलाहल में
कुछ स्वर मधुमय,
उन्मुक्त-अभय,
सुन लेता हूँ।
हर काल कठिन के बन्धन से
ले तार तरल
कुछ मुद-मंगल
मैं सुधि-पट पर
बुन लेता हूँ।
कुछ पल सुखमय,
अमरण-अक्षय,
चुन लेता हूँ।
मैं जग के हर कोलाहल में
कुछ स्वर मधुमय,
उन्मुक्त-अभय,
सुन लेता हूँ।
हर काल कठिन के बन्धन से
ले तार तरल
कुछ मुद-मंगल
मैं सुधि-पट पर
बुन लेता हूँ।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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Poem
Poetry
कविता
जाल समेटा हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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