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मेरा संबल

मैं जीवन की हर हल चल से
कुछ पल सुखमय,
अमरण-अक्षय,
चुन लेता हूँ।

मैं जग के हर कोलाहल में
कुछ स्वर मधुमय,
उन्मुक्त-अभय,
सुन लेता हूँ।

हर काल कठिन के बन्धन से
ले तार तरल
कुछ मुद-मंगल
मैं सुधि-पट पर
बुन लेता हूँ।

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