- Get link
- X
- Other Apps
Featured post
- Get link
- X
- Other Apps
1
नगाधिराज श्रृंग पर खड़ी हुई,
समुद्र की तरंग पर अड़ी हुई,
स्वदेश में सभी जगह गड़ी हुई अटल ध्वजा
हरी, सफेद
केसरी।
2
न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,
यह दंड-भेद के समक्ष यह झुकी,
सगर्व आज शत्रु-शीश पर ठुकी,
विजय ध्वजा
हरी, सफ़ेद
केसरी।
3
चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें,
अजर सदा, इसे लिये हुए जिए,
अमर सदा, इसे लिये हुए मरे,
अजय ध्वजा
हरी, सफ़ेद
केसरी।
नगाधिराज श्रृंग पर खड़ी हुई,
समुद्र की तरंग पर अड़ी हुई,
स्वदेश में सभी जगह गड़ी हुई अटल ध्वजा
हरी, सफेद
केसरी।
2
न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,
यह दंड-भेद के समक्ष यह झुकी,
सगर्व आज शत्रु-शीश पर ठुकी,
विजय ध्वजा
हरी, सफ़ेद
केसरी।
3
चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें,
अजर सदा, इसे लिये हुए जिए,
अमर सदा, इसे लिये हुए मरे,
अजय ध्वजा
हरी, सफ़ेद
केसरी।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
Hindi Kavita
Kavita
Poem
Poetry
कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment