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अजेय तू अभी बना!
न मंजिलें मिलीं कभी,
न मुश्किलें हिलीं कभीं,
मगर क़दम थमें नहीं,
क़रार-क़ौल जो ठना।
अजेय तू अभी बना।
सफल न एक चाह भी,
सुनी न एक आह भी,
मगर नयन भुला सके
कभी न स्वप्न देखना।
अजेय तू अभी बना!
अतीत याद है तुझे,
कठिन विषाद है तुझे,
मगर भविष्य से रूका
न अँखमुदौल खेलना।
अजेय तू अभी बना!
सुरा समाप्त हो चुकी,
सुपात्र-माल खो चुकी,
मगर मिटी, हटी, दबी
कभी न प्यास-वासना।
अजेय तू अभी बना!
पहाड़ टूटकर गिरा,
प्रलय पयोद भी घिरा,
मनुष्य है कि देव है
कि मेरुदंड है तना!
अजेय तू अभी बना!
न मंजिलें मिलीं कभी,
न मुश्किलें हिलीं कभीं,
मगर क़दम थमें नहीं,
क़रार-क़ौल जो ठना।
अजेय तू अभी बना।
सफल न एक चाह भी,
सुनी न एक आह भी,
मगर नयन भुला सके
कभी न स्वप्न देखना।
अजेय तू अभी बना!
अतीत याद है तुझे,
कठिन विषाद है तुझे,
मगर भविष्य से रूका
न अँखमुदौल खेलना।
अजेय तू अभी बना!
सुरा समाप्त हो चुकी,
सुपात्र-माल खो चुकी,
मगर मिटी, हटी, दबी
कभी न प्यास-वासना।
अजेय तू अभी बना!
पहाड़ टूटकर गिरा,
प्रलय पयोद भी घिरा,
मनुष्य है कि देव है
कि मेरुदंड है तना!
अजेय तू अभी बना!
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सतरंगिनी हरिवंशराय बच्चन
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