- Get link
- X
- Other Apps
Featured post
- Get link
- X
- Other Apps
१.
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
संकेत किया यह किसने,
यह किसकी भौहें घूमीं?
सहसा मधुबालाओं ने
मदभरी सुराही चूमी;
फिर चली इन्हें सब लेकर,
होकर प्रतिबिम्बित इनमें,
चेतन का कहना भी क्या,
जड़ दीवारें भी झूमीं,
सबने ज्योहीं कलि-मुख की
मृदु अधर पंखुरियाँ खोलीं,
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
२.
जिस अमृतमय वाणी के
जड़ में जीवन जग जाता,
रुकता सुनकर वह कैसे ,
रसिकों का दल मदमाता;
आँखों के आगे पाकर
अपने जीवन का सपना,
हर एक उसे छूने को
आया निज कर फैलाता;
पा सत्य,कलोल उठी कर
मधु के प्यासों की टोली,
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
३.
सारी साधें जीवन की
अधरों में आज समाई,
सुख,शांति जगत् की सारी
छनकर मदिरा में आई,
इच्छित स्वर्गों की प्रतिमा
साकार हुई,सखि तुम हो;
अब ध्येय विसुधि,विस्मृत है,
है मुक्ति यही सुखदायी,
पलभर की चेतनता भी
अब सह्य नहीं, ओ भोली,
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
४.
मधुघट कंधों से उतरे,
आशा से आँखे चमकीं,
छल-छल कण माणिक मदिरा
प्यालों के अंदर दमकी,
दानी मधुबालाओं में
ली झुका सुराही अपनी,
'आरम्भ करो'कहती-सी
मधुगंध चतुर्दिक गमकी,
आशीष वचन कहने को
मधुपों की जिह्वा डोली;
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
५.
दो दौर न चल पाए थे
इस तृष्णा के आंगन में,
डूबा मदिरालय सारा
मतवालों के क्रन्दन में;
यमदूत द्वार पर आया
ले चलने का परवाना,
गिर-गिर टूटे घट-प्याले,
बुझ दीप गये सब क्षण में;
सब चले किए सिर नीचे
ले अरमानो की झोली.
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'चलो,चलो'की बोली!
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
संकेत किया यह किसने,
यह किसकी भौहें घूमीं?
सहसा मधुबालाओं ने
मदभरी सुराही चूमी;
फिर चली इन्हें सब लेकर,
होकर प्रतिबिम्बित इनमें,
चेतन का कहना भी क्या,
जड़ दीवारें भी झूमीं,
सबने ज्योहीं कलि-मुख की
मृदु अधर पंखुरियाँ खोलीं,
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
२.
जिस अमृतमय वाणी के
जड़ में जीवन जग जाता,
रुकता सुनकर वह कैसे ,
रसिकों का दल मदमाता;
आँखों के आगे पाकर
अपने जीवन का सपना,
हर एक उसे छूने को
आया निज कर फैलाता;
पा सत्य,कलोल उठी कर
मधु के प्यासों की टोली,
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
३.
सारी साधें जीवन की
अधरों में आज समाई,
सुख,शांति जगत् की सारी
छनकर मदिरा में आई,
इच्छित स्वर्गों की प्रतिमा
साकार हुई,सखि तुम हो;
अब ध्येय विसुधि,विस्मृत है,
है मुक्ति यही सुखदायी,
पलभर की चेतनता भी
अब सह्य नहीं, ओ भोली,
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
४.
मधुघट कंधों से उतरे,
आशा से आँखे चमकीं,
छल-छल कण माणिक मदिरा
प्यालों के अंदर दमकी,
दानी मधुबालाओं में
ली झुका सुराही अपनी,
'आरम्भ करो'कहती-सी
मधुगंध चतुर्दिक गमकी,
आशीष वचन कहने को
मधुपों की जिह्वा डोली;
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली!
५.
दो दौर न चल पाए थे
इस तृष्णा के आंगन में,
डूबा मदिरालय सारा
मतवालों के क्रन्दन में;
यमदूत द्वार पर आया
ले चलने का परवाना,
गिर-गिर टूटे घट-प्याले,
बुझ दीप गये सब क्षण में;
सब चले किए सिर नीचे
ले अरमानो की झोली.
गूँजी मदिरालय भर में
लो,'चलो,चलो'की बोली!
Harivansh Rai Bachchan Kavita
Hindi Kavita
Kavita
Poem
Poetry
कविता
मधुबाला हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment