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खट्टे अंगूर

एक लोमड़ी खोज रही थी
जंगल में कुछ खाने को,
दीख पड़ा जब अंगूरों का
गुच्छा, लपकी पाने को ।

ऊँचाई पर था वह गुच्छा,
दाने थे रसदार बड़े,
लगी सोचने अपने मन में
कैसे ऊँची डाल चढ़े ।

नहीं डाल पर चढ़ सकती थी
खड़ी हुई दो टाँगों पर,
पहुंच न पाई, ऊपर उचकी
अपना थूथन ऊपर कर ।

बार-बार वह ऊपर उछली
बार-बार नीचे गिर कर
लेकिन अंगूरों का गुच्छा
रह जाता था बित्ते भर ।

सौ कोशिश करने पर भी जब
गुच्छा रहा दूर का दूर
अपनी हार छिपाने को वह
बोली, खट्टे हैं अंगूर ।

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