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1
बहुत प्रसिद्ध खेल हैं कृपाण के,
कहां समान वह कलम-कमान के,
अचूक हैं निशान शब्द-बाण के,
कलम लिए
हुए कभी
न तुम डरो।
2
समस्त देश की बसेक टेक हो,
समस्त छिन्न-भिन्न जाति एक हो,
विमूढ़ता जहां वहाँ विवेक हो,
यही प्रभाव
शब्द-शब्द
में भरो।
3
न आज स्वप्न-कल्पना-सुरा छको,
न आज बात आसमान की बको,
स्वदेश पर मुसीबतें, सुलेखकों,
उसे प्रदान
आज लेखनी
करो।
बहुत प्रसिद्ध खेल हैं कृपाण के,
कहां समान वह कलम-कमान के,
अचूक हैं निशान शब्द-बाण के,
कलम लिए
हुए कभी
न तुम डरो।
2
समस्त देश की बसेक टेक हो,
समस्त छिन्न-भिन्न जाति एक हो,
विमूढ़ता जहां वहाँ विवेक हो,
यही प्रभाव
शब्द-शब्द
में भरो।
3
न आज स्वप्न-कल्पना-सुरा छको,
न आज बात आसमान की बको,
स्वदेश पर मुसीबतें, सुलेखकों,
उसे प्रदान
आज लेखनी
करो।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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