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कहता पपीहा, पी कहाँ?'
युग-कल्प हैं सुनते रहे,
युग-कल्प सुनते जाएँगे,
प्यासे पपीहे के वचन
लेकिन कहाँ रुक पाएँगे,
सुनती रहेगी सरज़मीं,
सुनता रहेगा आसमाँ;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
विस्तृत गगन में घन घिरे,
पानी गिरा, पत्थर गिरे,
विस्तृत मही पर सर भरे,
उमही नदी, निर्झर झरे,
पर माँगती ही रह गई
दो बूँद जल इसकी ज़बाँ;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
दो बूँद जल से ही अगर
तृष्णा बुझाना चाहता,
दो बूँद जल से ही अगर
यह शान्ति पाना चाहता,
तो भूमि के भी बीच में
इसकी कमी होती कहाँ;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
यह बूँद ही कुछ और है,
यह खोज ही कुछ और है,
यह प्यास ही कुछ और है,
यह सोज़ ही कुछ और है,
जिसके लिए, जिसको लिए
जल-थल-गगन में यह भ्रमा;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
लघुतम विहंगम यह नहीं,
यह प्यास की आवाज़ है,
इसमें छिपा ज़िंदादिलों-
की, ज़िन्दगी का राज़ है,
यह जिस जगह उठती नहीं
है मौत का साया वहाँ;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
धड़कन गगन की-सी बनी
उठती जहाँ यह रात में,
मेरा हृदय कुछ ढूँढने
लगता इसी के साथ में,
यह सिद्ध करता है कि मैं
जीवित अभी, मुर्दा नहीं,
है शेष आकर्षण अभी
मेरे लिए अज्ञात में;
थमता न मैं उस ठौर भी
यह गूँजकर मिटती जहाँ!
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
युग-कल्प हैं सुनते रहे,
युग-कल्प सुनते जाएँगे,
प्यासे पपीहे के वचन
लेकिन कहाँ रुक पाएँगे,
सुनती रहेगी सरज़मीं,
सुनता रहेगा आसमाँ;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
विस्तृत गगन में घन घिरे,
पानी गिरा, पत्थर गिरे,
विस्तृत मही पर सर भरे,
उमही नदी, निर्झर झरे,
पर माँगती ही रह गई
दो बूँद जल इसकी ज़बाँ;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
दो बूँद जल से ही अगर
तृष्णा बुझाना चाहता,
दो बूँद जल से ही अगर
यह शान्ति पाना चाहता,
तो भूमि के भी बीच में
इसकी कमी होती कहाँ;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
यह बूँद ही कुछ और है,
यह खोज ही कुछ और है,
यह प्यास ही कुछ और है,
यह सोज़ ही कुछ और है,
जिसके लिए, जिसको लिए
जल-थल-गगन में यह भ्रमा;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
लघुतम विहंगम यह नहीं,
यह प्यास की आवाज़ है,
इसमें छिपा ज़िंदादिलों-
की, ज़िन्दगी का राज़ है,
यह जिस जगह उठती नहीं
है मौत का साया वहाँ;
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
धड़कन गगन की-सी बनी
उठती जहाँ यह रात में,
मेरा हृदय कुछ ढूँढने
लगता इसी के साथ में,
यह सिद्ध करता है कि मैं
जीवित अभी, मुर्दा नहीं,
है शेष आकर्षण अभी
मेरे लिए अज्ञात में;
थमता न मैं उस ठौर भी
यह गूँजकर मिटती जहाँ!
कहता पपीहा, पी कहाँ?'
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
सतरंगिनी हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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