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वर्षाऽमंगल

पुरुष:
गोरा बादल!
स्त्री:
गोरा बादल!
दोनों:
गोरा बादल!
गोरा बादल तो बे-बरसे चला गया;
क्या काला बादल भी ब-बरसे जाएगा?
पुरुष:
बहुत दिनों से अंबर प्यासा!
स्त्री:
बहुत दिनों से धरती प्यासी!
दोनों:
बहुत दिनों से घिरी उदासी!
गोरा बादल तो तरसाकर चला गया;
क्या काला बादल ही जग को तरसेगा?
पुरुष:
गोरा बादल!
स्त्री:
काला बादल!
दोनों:
गोरा बादल!
काला बादल!
पुरुष:
गोरा बादल उठ पच्छिम से आया था--
गरज-गरज कर फिर पच्छिम को चला गया।
स्त्री:
काला बादल उठ पूरब से आया है--
कड़क रहा है,चमक रहा है,छाया है।
पुरुष:
आँखों को धोखा होता है!
स्त्री:
जग रहा है या सोता है?
पुरुष:
गोरा बादल गया नहीं था पच्छिम को,
रंग बदलकर अब भी ऊपर छाया है!
स्त्री:
गोरा बादल चला गया हो तो भी क्या,
काले बादल का सब ढंग उसी का और पराया है।
पुरुष:
इससे जल की आशा धोखा!
स्त्री:
उल्टा इसने जल को सोखा!
दोनों:
कैसा अचरज!
कैसा धोखा!
छूंछी धरती!
भरा हुआ बादल का कोखा!
पुरुष:
गोरा बादल!
स्त्री:
गोरा बादल!
पुरुष:
गोरा बादल तो बे-बरसे चला गया;
क्या काला बादल भी बे-बरसे जाएगा?
स्त्री:
गोरा बादल तो तरसाकर चला गया;
क्या काला बादल ही जग को तरसेगा?
दोनों:
पूरब का पच्छिम का बादल,
उत्तर का दक्खिन का बादल--
कोई बादल नहीं बरसता ।
वसुंधरा के
कंठ-ह्रदय की प्यास न हरता।
वसुधा तल का
जन-मन-संकट-त्रास न हर्ता।
व्यर्थ प्रतीक्षा!धिक् प्रत्याशा!धिक् परवशता!
उसे कहें क्या कड़क-चमक जो नहीं बरसता!

पुरुष:
गोरा बादल प्यासा रखता!
स्त्री:
काला बादल प्यासा रखता
दोनों:
जीवित आँखों की,कानों में आशा रखता,
प्यासा रखता!प्यासा रखता!प्यासा रखता!

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