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रक्त की लिखत

क़लम के कारखाने हैं,
स्याही की फैक्टरियां हैं
(जैसे सोडावाटर की)
काग़ज़ के नगर हैं ।

और उनका उपयोग-दुरुपयोग
सिखाने के
स्कूल हैं,
कालेज हैं,
युनिवर्सिटियां हैं ।

और उनकी पैदावार के प्रचार के लिए
दुकानें हैं,
बाज़ार हैं,
इश्तहार हैं,
अख़बार हैं ।

और लोग हैं कि आँखें उठाकर उन्हें देखते भी नहीं,
उनके इतने अभ्यस्त हैं,
उनसे इतने परिचित हैं,
इतने बेज़ार हैं ।

पर अब भी एक दीवार हैं
जिस पर
अपने ख़ून में अपनी उँगली डबोकर
एक
सीधी
खड़ी
लकीर
खींच सकने वाले का
एक दुनिया को इंतज़ार है ।

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