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1
सुवर्ण मृत्तिका हुई कलम छुई,
अमृत हर एक बिंदु लेखनी चुई,
कलम जहाँ गई वहाँ विजय हुई,
विफल रही
नहीं कभी
न भारती।
2
कलम लिए चले कि तुम कला चली,
कि कल्पना रहस्य-अंचला चली,
कि व्योम-स्वर्ग-स्वप्न-श्रृंखला चली,
तुम्हें स्वदेश-
पुतलियां
निहारतीं।
3
करो विचित्र इंद्रधनु-विभा परे,
तजो सुरम्य हस्ति-दंत-घरहरे,
न अब नखत निहारकर निहाल हो,
न आसमान देखते रहो खड़े,
तुम्हें ज़मीन
देश की
पुकारती।
सुवर्ण मृत्तिका हुई कलम छुई,
अमृत हर एक बिंदु लेखनी चुई,
कलम जहाँ गई वहाँ विजय हुई,
विफल रही
नहीं कभी
न भारती।
2
कलम लिए चले कि तुम कला चली,
कि कल्पना रहस्य-अंचला चली,
कि व्योम-स्वर्ग-स्वप्न-श्रृंखला चली,
तुम्हें स्वदेश-
पुतलियां
निहारतीं।
3
करो विचित्र इंद्रधनु-विभा परे,
तजो सुरम्य हस्ति-दंत-घरहरे,
न अब नखत निहारकर निहाल हो,
न आसमान देखते रहो खड़े,
तुम्हें ज़मीन
देश की
पुकारती।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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