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वर्षा समीर

बरसात की आती हवा।

वर्षा-धुले आकाश से,
या चन्द्रमा के पास से,
या बादलों की साँस से;
मघुसिक्त, मदमाती हवा,
बरसात की आती हवा।

यह खेलती है ढाल से,
ऊँचे शिखर के भाल से,
अस्काश से, पाताल से,
झकझोर-लहराती हवा;
बरसात की आती हवा।

यह खेलती है सर-वारि से,
नद-निर्झरों की धार से,
इस पार से, उस पार से,
झुक-झूम बल खाती हवा;
बरसात की आती हवा।

यह खेलती तरुमाल से,
यह खेलती हर डाल से,
लोनी लता के जाल से,
अठखेल-इठलाती हवा;
बरसात की आती हवा।

इसकी सहेली है पिकी,
इसकी सहेली चातकी,
संगिन शिखिन, संगी शिखी,
यह नाचती-गाती हवा;
बरसात की आती हवा।

रंगती कभी यह इन्द्रधनु,
रंगती कभी यह चन्द्रधनु,
अब पीत घन, अब रक्त घन,
रंगरेल-रंगराती हवा;
बरसात की आती हवा।

यह गुदगुदाती देह को,
शीतल बनाती गेह को,
फिर से जगाती नेह को;
उल्लास बरसाती हवा;
बरसात की आती हवा।

यह शून्य से होकर प्रकट
नव हर्ष से आगे झपट;
हर अंग से जाती लिपट,
आनन्द सरसाती हवा;
बरसात की आती हवा।

जब ग्रीष्म में यह जल चुकी
जब खा अँगार-अनल चुकी,
जब आग में यह पल चुकी,
वरदान यह पाती हवा;
बरसात की आती हवा।

तू भी विरह में दह चुका,
तू भी दुखों को सह चुका,
दुख की कहानी कह चुका,
मुझसे बता जाती हवा;
बरसात की आती हवा।

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