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(१)
ऐ छोटे विहग सुकुमार !
तेरे कोमल चंचु अधर से
निकल रहे स्नेहाप्लुत स्वर से
लगता, कोई करे किसी को निर्भय चुम्बन प्यार ।
(२)
किसको करते चुम्बन प्यार ?
क्या मानव आंखों से देखी
गई ना बुद्धि-चक्षु अवरेखी
उसको ऊषा काल बहे जो शीतल मन्द बयार ?
(३)
या सुमनों में शिशु कुमार,
जो सुगंध का अब तक सोया,
रजनी के स्वप्नों में खोया,
उसे जगाते धीमे धीमे कर के चुम्बन-प्यार ?
(४)
या तुम शशि किरणों के तार
से जो चुम्बन कर
और सितारों का प्रकाश वर
चूमचूम सस्नेह विदा करते हो, अन्तिम बार ?
(५)
या तुम बाल सूर्य के हाथ,
स्वर्ण रंग में गए रंगाए,
गए तुम्हारी ओर बढ़ाए,
करते हो आभूषित अपने रजत-चुम्बनों साथ ?
(६)
या तुम उस चुम्बन का, तात !
पाठ याद करते उठ भोर,
जिसे लिटा अञ्चल पर छोर
अपने तुमको, मातृ विहगिनि ने सिखलाया रात !
(७)
या तुम वह चुम्बन प्रति भोर
उठ कर याद किया करते हो,
(मुझे बताते क्यों डरते हो?)
जिससे तुम्हें किसी ने भेजा जीवन के इस ओर ?
(८)
तब की तो है मुझे न याद,
पर अतीत जीवन के चुम्बन
कितने चमका करें हृद्गगन !
जिनकी मूकस्मृति मेरे मन भरती मधुर विषाद!
(९)
यदि न जगत के धंधे फन्द
होते, मानस-गगन घूमता,
प्रति चुम्बन को पुन: चूमता,
सदा बना मैं तुमसा रहता एक विहंग स्वच्छन्द !
ऐ छोटे विहग सुकुमार !
तेरे कोमल चंचु अधर से
निकल रहे स्नेहाप्लुत स्वर से
लगता, कोई करे किसी को निर्भय चुम्बन प्यार ।
(२)
किसको करते चुम्बन प्यार ?
क्या मानव आंखों से देखी
गई ना बुद्धि-चक्षु अवरेखी
उसको ऊषा काल बहे जो शीतल मन्द बयार ?
(३)
या सुमनों में शिशु कुमार,
जो सुगंध का अब तक सोया,
रजनी के स्वप्नों में खोया,
उसे जगाते धीमे धीमे कर के चुम्बन-प्यार ?
(४)
या तुम शशि किरणों के तार
से जो चुम्बन कर
और सितारों का प्रकाश वर
चूमचूम सस्नेह विदा करते हो, अन्तिम बार ?
(५)
या तुम बाल सूर्य के हाथ,
स्वर्ण रंग में गए रंगाए,
गए तुम्हारी ओर बढ़ाए,
करते हो आभूषित अपने रजत-चुम्बनों साथ ?
(६)
या तुम उस चुम्बन का, तात !
पाठ याद करते उठ भोर,
जिसे लिटा अञ्चल पर छोर
अपने तुमको, मातृ विहगिनि ने सिखलाया रात !
(७)
या तुम वह चुम्बन प्रति भोर
उठ कर याद किया करते हो,
(मुझे बताते क्यों डरते हो?)
जिससे तुम्हें किसी ने भेजा जीवन के इस ओर ?
(८)
तब की तो है मुझे न याद,
पर अतीत जीवन के चुम्बन
कितने चमका करें हृद्गगन !
जिनकी मूकस्मृति मेरे मन भरती मधुर विषाद!
(९)
यदि न जगत के धंधे फन्द
होते, मानस-गगन घूमता,
प्रति चुम्बन को पुन: चूमता,
सदा बना मैं तुमसा रहता एक विहंग स्वच्छन्द !
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तेरा हार हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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