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गीत कह इसको न दुनियाँ
यह दुखों की माप मेरे!
(१)
काम क्या समझूँ न हो यदि
गाँठ उर की खोलने को?
संग क्या समझूँ किसी का
हो न मन यदि बोलने को?
जानता क्या क्षीण जीवन ने
उठाया भार कितना,
बाट में रखता न यदि
उच्छ्वास अपने तोलने को?
हैं वही उच्छ्वास कल के
आज सुखमय राग जग में,
आज मधुमय गान, कल के
दग्ध कंठ प्रलाप मेरे.
गीत कह इसको न, दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे!
(२)
उच्चतम गिरि के शिखर को
लक्ष्य जब मैंने बनाया,
गर्व से उन्मत होकर
शीश मानव ने उठाया,
ध्येय पर पहुँचा, विजय के
नाद से संसार गूंजा,
खूब गूंजा किंतु कोई
गीत का सुन स्वर न पाया;
आज कण-कण से ध्वनित
झंकार होगी नूपुरों की,
खड्ग-जीवन-धार पर अब
है उठे पद काँप मेरे.
गीत कह इसको न, दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे!
(३)
गान हो जब गूँजने को
विश्व में, क्रंदन करूँ मैं,
हो गमकने को सुरभि जब
विश्च में, आहें भरूँ मैं,
विश्व बनने को सरस हो
जब, गिराऊँ अश्रु मैं तब
विश्व जीवन ज्योति जागे,
इसलिए जलकर मरूँ मैं!
बोल किस आवेश में तू
स्वर्ग से यह माँग बैठा ?--
पुण्य जब जग के उदय हों
तब उदय हों पाप मेरे !
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
(४)
चुभ रहा था जो हदय में
एक तीखा शूल बनकर,
विश्व के कर में पड़ा वह
कल्प तरु का फूल बनकर,
सीखता संसार अब है
ज्ञान का प्रिय पाठ जिससे,
प्राप्त वह मुझको हुई थी
एक भीषण भूल बनकर,
था जगत का और मेरा
यदि कभी संबंध तो यह-
विश्व को वरदान थे जो
थे वही अभिशाप मेरे!
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
(५)
भावना के पुण्य अपनी
सूत्र-बाणी में पिरोकर
धर दिए मैंने खुशी से
विश्व के विस्तीर्ण पथ पर,
कौन है सिर पर चढ़ाता
कौन ठुकराता पगों से
कौन है करता उपेक्षा-
मुड़ कर कभी देखा न पल भर ।
थी बड़ी नाजुक धरोहर,
था बड़ा दायित्व मुझपर,
अब नहीं चिंता इन्हें
झुलसा न दें संताप मेरे ।
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
यह दुखों की माप मेरे!
(१)
काम क्या समझूँ न हो यदि
गाँठ उर की खोलने को?
संग क्या समझूँ किसी का
हो न मन यदि बोलने को?
जानता क्या क्षीण जीवन ने
उठाया भार कितना,
बाट में रखता न यदि
उच्छ्वास अपने तोलने को?
हैं वही उच्छ्वास कल के
आज सुखमय राग जग में,
आज मधुमय गान, कल के
दग्ध कंठ प्रलाप मेरे.
गीत कह इसको न, दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे!
(२)
उच्चतम गिरि के शिखर को
लक्ष्य जब मैंने बनाया,
गर्व से उन्मत होकर
शीश मानव ने उठाया,
ध्येय पर पहुँचा, विजय के
नाद से संसार गूंजा,
खूब गूंजा किंतु कोई
गीत का सुन स्वर न पाया;
आज कण-कण से ध्वनित
झंकार होगी नूपुरों की,
खड्ग-जीवन-धार पर अब
है उठे पद काँप मेरे.
गीत कह इसको न, दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे!
(३)
गान हो जब गूँजने को
विश्व में, क्रंदन करूँ मैं,
हो गमकने को सुरभि जब
विश्च में, आहें भरूँ मैं,
विश्व बनने को सरस हो
जब, गिराऊँ अश्रु मैं तब
विश्व जीवन ज्योति जागे,
इसलिए जलकर मरूँ मैं!
बोल किस आवेश में तू
स्वर्ग से यह माँग बैठा ?--
पुण्य जब जग के उदय हों
तब उदय हों पाप मेरे !
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
(४)
चुभ रहा था जो हदय में
एक तीखा शूल बनकर,
विश्व के कर में पड़ा वह
कल्प तरु का फूल बनकर,
सीखता संसार अब है
ज्ञान का प्रिय पाठ जिससे,
प्राप्त वह मुझको हुई थी
एक भीषण भूल बनकर,
था जगत का और मेरा
यदि कभी संबंध तो यह-
विश्व को वरदान थे जो
थे वही अभिशाप मेरे!
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
(५)
भावना के पुण्य अपनी
सूत्र-बाणी में पिरोकर
धर दिए मैंने खुशी से
विश्व के विस्तीर्ण पथ पर,
कौन है सिर पर चढ़ाता
कौन ठुकराता पगों से
कौन है करता उपेक्षा-
मुड़ कर कभी देखा न पल भर ।
थी बड़ी नाजुक धरोहर,
था बड़ा दायित्व मुझपर,
अब नहीं चिंता इन्हें
झुलसा न दें संताप मेरे ।
गीत कह इसको न दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
Harivansh Rai Bachchan Kavita
Hindi Kavita
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Poem
Poetry
कविता
मधु कलश हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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