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(1942)
मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।
दबी हुई दुबकी बैठी हैं
कलरवकारी चार दिशाएँ,
ठगी हुई, ठिठकी-सी लगतीं
नभ की चिर गतिमान हवाएँ,
अंबर के आनन के ऊपर
एक मुर्दनी-सी छाई है,
एक उदासी में डूबी हैं
तृण-तरुवर-पल्लव-लतिकाएँ;
आंधी के पहले देखा है
कभी प्रकृति का निश्चल चेहरा?
इस निश्चलता के अंदर से
ही भीषण तूफान उठेगा।
मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।
मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।
दबी हुई दुबकी बैठी हैं
कलरवकारी चार दिशाएँ,
ठगी हुई, ठिठकी-सी लगतीं
नभ की चिर गतिमान हवाएँ,
अंबर के आनन के ऊपर
एक मुर्दनी-सी छाई है,
एक उदासी में डूबी हैं
तृण-तरुवर-पल्लव-लतिकाएँ;
आंधी के पहले देखा है
कभी प्रकृति का निश्चल चेहरा?
इस निश्चलता के अंदर से
ही भीषण तूफान उठेगा।
मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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