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प्रेम की मंद मृत्यु

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लेकिन वह धागा अब काल-जीर्ण,
शक्ति-क्षीण,
सड़ा-गला;
हिलो नहीं,
खिंचो नहीं,
तनो नहीं-,
यह शोख़ी यौवन ही झेल-खेल सकता था--
जहाँ और जैसी हो,
बुत-सी बन बैठी रहो,
समय सहो;
बंधन गिरेगा जब तिनका उठेगा नहीं
करने को प्रकट खेद ।

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