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देश-विभाजन-३
1
विदेश की कुनीति हो गई सफल,
समस्त जाति की न काम दी अक़ल,
सकी न भाँप एक चाल, एक छल,
फ़रक़ हमें
दिखा न फूल-
शूल में।
2
पहन प्रसून हार हम खड़े हुए,
कि खार मौत के गले पड़े हुए,
कृतज्ञ हम ब्रिटेन के बड़े हुए,
कि वह हमें
गया ढकेल
भूल में।
3
यही स्वतंत्रता-लता गया लगा,
कि मुल्क ओर-छोर खून से रंगा,
बिखेर बीज फूट के हुआ अलग,
स्वदेश सर्व काल को गया ठगा,
गरल गया
उलीच नीच
मूल में।
1
विदेश की कुनीति हो गई सफल,
समस्त जाति की न काम दी अक़ल,
सकी न भाँप एक चाल, एक छल,
फ़रक़ हमें
दिखा न फूल-
शूल में।
2
पहन प्रसून हार हम खड़े हुए,
कि खार मौत के गले पड़े हुए,
कृतज्ञ हम ब्रिटेन के बड़े हुए,
कि वह हमें
गया ढकेल
भूल में।
3
यही स्वतंत्रता-लता गया लगा,
कि मुल्क ओर-छोर खून से रंगा,
बिखेर बीज फूट के हुआ अलग,
स्वदेश सर्व काल को गया ठगा,
गरल गया
उलीच नीच
मूल में।
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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