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आप किनके साथ हैं?

मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो
सीधी रखते अपनी रीढ़।

1
कभी नहीं जो तज सकते हैं
अपना न्यायोचित अधिकार,
कभी नहीं जो सह सकते हैं
शीश नवाकर अत्याचार,
एक अकेले हों या उनके
साथ खड़ी हो भारी भीड़;
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो
सीधी रखते अपनी रीढ़।
2
निर्भय होकर घोषित करते
जो अपने उद्गार-विचार,
जिनकी जिह्वा पर होता है
उनके अन्तर का अँगार,
नहीं जिन्हें चुप कर सकती है
आतताइयों की शमशीर;
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो
सीधी रखते अपनी रीढ़।
3
नहीं झुका करते जो दुनिया
से करने को समझौता,
ऊँचे से ऊँचे सपनों को
देते रहते जो न्योता,
दूर देखती जिनकी पैनी
आँख भविष्यत का तम चीर;
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो
सीधी रखते अपनी रीढ़।
4
जो अपने कंधों से पर्वत
से बढ़ टक्कर लेते हैं,
पथ की बाधाओं को जिनके
पाँव चुनौती देते हैं,
जिनको बाँध नहीं सकती है
लोहे की बेड़ी-जंजीर;
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो
सीधी रखते अपनी रीढ़।
5
जो चलते हैं अपने छप्पर
के ऊपर लूका धरकर,
हार-जीत का सौदा करते
जो प्राणों की बाजी पर,
कूद उदधि में नहीं उलट कर
जो फिर ताका करते तीर;
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो
सीधी रखते अपनी रीढ़।
6
जिनको ये अवकाश नहीं है,
देखें कब तारे अनुकूल;
जिनको यह परवाह नहीं है,
कब तक भद्रा कब दिक्शूल,
जिनके हाथों की चाबुक से
चलती है उनकी तक़दीर;
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो
सीधी रखते अपनी रीढ़।
7
तुम हो कौन, कहो जो मुझसे,
सही-गलत पथ लो तो जान,
सोच-सोचकर, पूछ-पूछकर
बोलो, कब चलता तूफ़ान,
सत्पथ है वह जिस पर अपनी
छाती ताने जाते वीर।
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो
सीधी रखते अपनी रीढ़।

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