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विभाजितों के प्रति

दग्‍ध होना ही
अगर इस आग में है
व्‍यर्थ है डर,
पाँव पीछे को हटाना
व्‍यर्थ बावेला मचाना।

पूछ अपने आप से
उत्‍तर मुझे दो,
अग्नियुत हो?
बग्नियुत हो?

आग अलिंगन करे
यदि आग को
किसलिए झिझके?
चाहिए उसको भुजा भर
और भभके!

और अग्नि
निरग्नि को यदि
अंग से अपने लगाती,
और सुलगाती, जलाती,
और अपने-सा बनाती,
तो सौभाग्‍य रेखा जगमगाई-
आग जाकर लौट आई!

किन्‍तु शायद तुम कहोगे
आग आधे,
और आधे भाग पानी।
तुम पवभाजन की, द्विधा की,
डरी अपने आप से,
ठहरी हुई-सी हो कहानी।
आग से ही नहीं
पानी से डरोगे,
दूर भागोगे,
करोगे दीन क्रंदन,
पूर्व मरने के
हजार बार मरोगे।

क्‍यों कि जीना और मरना
एकता ही जानती है,
वह बिभाजन संतुलन का
भेद भी पहचानती है।

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