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(१)
"पड़े वन्दी क्यों कारागार ?
चले तुम कौन कुचाल ?
चुराया किसका माल ?
छीना क्या किसका जिस पर था तुम्हें नहीं अधिकार ?"
(२)
"न था मन में कोई कुविचार,
न थी दौलत की चाह,
न थी धन की परवाह,
था अपराध हमारा केवल किया देश को प्यार !
(३)
शीश पर मातृ भूमि-ऋण भार,
उसे हूँ रहा उतार ।
देशहित कारागार-
कारागार नहीं, वह तो है स्वतन्त्रता का द्वार !"
"पड़े वन्दी क्यों कारागार ?
चले तुम कौन कुचाल ?
चुराया किसका माल ?
छीना क्या किसका जिस पर था तुम्हें नहीं अधिकार ?"
(२)
"न था मन में कोई कुविचार,
न थी दौलत की चाह,
न थी धन की परवाह,
था अपराध हमारा केवल किया देश को प्यार !
(३)
शीश पर मातृ भूमि-ऋण भार,
उसे हूँ रहा उतार ।
देशहित कारागार-
कारागार नहीं, वह तो है स्वतन्त्रता का द्वार !"
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
तेरा हार हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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