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वन्दी

(१)
"पड़े वन्दी क्यों कारागार ?
चले तुम कौन कुचाल ?
चुराया किसका माल ?
छीना क्या किसका जिस पर था तुम्हें नहीं अधिकार ?"

(२)
"न था मन में कोई कुविचार,
न थी दौलत की चाह,
न थी धन की परवाह,
था अपराध हमारा केवल किया देश को प्यार !

(३)
शीश पर मातृ भूमि-ऋण भार,
उसे हूँ रहा उतार ।
देशहित कारागार-
कारागार नहीं, वह तो है स्वतन्त्रता का द्वार !"

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