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1
क़दम कलुष निशीथ के उखड़ चुके,
शिविर नखत समूह के उजड़ चुके,
पुरा तिमिर दुरा चला दुरित वदन,
नव प्रकाश
में अभी
विलंब है।
2
ढले न गीत में नवल विहंग स्वर,
चले न स्वप्न ही नवीन पंख पर,
न खोल फूल ही सके नए नयन,
युग प्रभात
में अभी
विलंब है।
3
विदेश-आधिपत्य देश से हटा,
कलंक भाल पर लगा हुआ कटा,
स्वराज की नहीं छिपी हुई छटा,
मगर सुराज
में अभी
विलंब है।
क़दम कलुष निशीथ के उखड़ चुके,
शिविर नखत समूह के उजड़ चुके,
पुरा तिमिर दुरा चला दुरित वदन,
नव प्रकाश
में अभी
विलंब है।
2
ढले न गीत में नवल विहंग स्वर,
चले न स्वप्न ही नवीन पंख पर,
न खोल फूल ही सके नए नयन,
युग प्रभात
में अभी
विलंब है।
3
विदेश-आधिपत्य देश से हटा,
कलंक भाल पर लगा हुआ कटा,
स्वराज की नहीं छिपी हुई छटा,
मगर सुराज
में अभी
विलंब है।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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