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पथ में भरी गई कठिनाई,
मंज़िल तेरे पास न आई,
(नहीं शत्रुता थी यह तुझसे)
क्योंकि चला था तू ले करके
कभी नहीं रुकने की आन ।
रवि ने तुमको पथ न दिखाया,
झंझा ने कर-दीप बुझाया,
(नहीं उपेक्षा थी यह तेरी)
क्योंकि जगत में एक तुझे था,
अपनी ज्वाला का अभिमान ।
ऊँचा तूने हाथ उठाया,
लेकिन अपना लक्ष्य न पाया,
(यह तेरा उपहास नहीं था)
क्योंकि तुझे थी केवल अपने
मनुजोचित कद की पहचान !
अमर वेदनाओं से अन्तर
मथा गया तेरा निशि-वासर,
(यह तुझपर अन्याय नहीं था)
क्योंकि यही था सबसे बढ़कर
तेरी छाती का सम्मान !
मंज़िल तेरे पास न आई,
(नहीं शत्रुता थी यह तुझसे)
क्योंकि चला था तू ले करके
कभी नहीं रुकने की आन ।
रवि ने तुमको पथ न दिखाया,
झंझा ने कर-दीप बुझाया,
(नहीं उपेक्षा थी यह तेरी)
क्योंकि जगत में एक तुझे था,
अपनी ज्वाला का अभिमान ।
ऊँचा तूने हाथ उठाया,
लेकिन अपना लक्ष्य न पाया,
(यह तेरा उपहास नहीं था)
क्योंकि तुझे थी केवल अपने
मनुजोचित कद की पहचान !
अमर वेदनाओं से अन्तर
मथा गया तेरा निशि-वासर,
(यह तुझपर अन्याय नहीं था)
क्योंकि यही था सबसे बढ़कर
तेरी छाती का सम्मान !
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
सतरंगिनी हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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