Featured post

दो फूल

एक डाल पर फूल खिले दो,
एक पूर्व-मुख,
और दूसरा कुछ पच्छिम रुख ।
एक श्वेत, प्रभ, पुण्य-प्रभाती,
श्वेत-शरद पूनों का चन्दा;
श्वेत-शिखर का हिम किरीट ज्यों,
श्वेत-मानसर के मराल-सा,
कामधेनु की दुग्ध-धार-सा,
अतल सिन्धु के धवल फेन-सा,
देश-जागरण-दिव्य शंख-सा,
कमल-पत्र पर अमल अश्रु-सा,
श्वेत कि जैसे घुलकर उजली निखरी खादी ।
और दूसरा लाल रंग का-
रंग प्रीति का,
रंग जीत का,
लाल-उषा का उठता घूंघट,
लाल-रची हाथों में मेंहदी,
लाल-रची पावों में जावक,
लाल-जगा प्राणों का पावक,
लाल-जाति की ध्वजा क्रांन्ति की,
लाल-रक्त जैसे शहीद का औ' दोनों फूलों की आभा
बहुत दिनों तक
रही बिखरती, तम-भ्रम हरती,
तृण-तृण को अनुप्रेरित करती,
किन्तु समय ऐसा आता है,
जब फूला हर फूल
डाल से टूट-छूटकर,
भू पर गिरकर,
मुरझाता है, मर जाता है ।
भीतर-भीतर दोनों फूलों में
कैसा विचित्र नाता था!
श्वेत पुष्प जा गिरा उस समय
तप्त शहीदी रक्त-स्नात था ।
लाल फूल
अपने लोहू की बूंद-बूंद जी
बूंद-बूंद पी,
गिरा जिस समय
उज्ज्वल, शीतल श्वेत, शांत था ।

Comments