- Get link
- X
- Other Apps
Featured post
- Get link
- X
- Other Apps
आसमान में परेशान-सा
कौआ उड़ता जाता था ।
बड़े जोर की प्यास लगी थी
पानी कहीं न पाता था ।
उड़ते उड़ते उसने देखा
एक जगह पर एक घड़ा,
सोचा अन्दर पानी होगा,
जल्दी-जल्दी वह उतरा ।
उसने चोंच घड़े में डाली
पी न सका लेकिन पानी,
पानी था अन्दर, पर थोड़ा
हार न कौए ने मानी ।
उठा चोंच सें कंकड़ लाया,
डाल दिया उसको अन्दर,
बडे गौर से उसने देखा
पानी उठता कुछ ऊपर ।
फिर तो कंकड़ पर कंकड़ ला
डाले उसने अन्दर को
धीरे-धीरे उठता-उठता
पानी आया ऊपर को ।
बैठ घड़े के मुँह पर अपनी
प्यास बुझाई कौए ने ।
मुश्किल में मत हिम्मत हारो
बात सिखाई कौए ने ।
कौआ उड़ता जाता था ।
बड़े जोर की प्यास लगी थी
पानी कहीं न पाता था ।
उड़ते उड़ते उसने देखा
एक जगह पर एक घड़ा,
सोचा अन्दर पानी होगा,
जल्दी-जल्दी वह उतरा ।
उसने चोंच घड़े में डाली
पी न सका लेकिन पानी,
पानी था अन्दर, पर थोड़ा
हार न कौए ने मानी ।
उठा चोंच सें कंकड़ लाया,
डाल दिया उसको अन्दर,
बडे गौर से उसने देखा
पानी उठता कुछ ऊपर ।
फिर तो कंकड़ पर कंकड़ ला
डाले उसने अन्दर को
धीरे-धीरे उठता-उठता
पानी आया ऊपर को ।
बैठ घड़े के मुँह पर अपनी
प्यास बुझाई कौए ने ।
मुश्किल में मत हिम्मत हारो
बात सिखाई कौए ने ।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
Hindi Kavita
Kavita
Poem
Poetry
कविता
बाल-कविताएँ हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment