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1
विनम्र हो ब्रिटेन-गर्व जो हरे,
विरक्त हो विमुक्त देश जो करे,
समाज किसलिए न देख हो दुखी,
कि उस महान
को खरीद
बंक ले।
2
स्वदेश बाग-डोर हाथ में लिए,
विशाल जन-समूह साथ में लिए,
कभी नहीं उचित कि हो अधोमुखी प्रवेश तुम
करो प्रमाद--
पंक में।
3
करो न व्यर्थ दाप, होशियार हो,
फला कभी न पाप, होशियार हो,
प्रसिद्ध है प्रकोप जन-जनार्दनी,
मिले तुम्हें न शाप होशियार हो,
तुम्हें कहीं
न राजमद
कलंक दे।
विनम्र हो ब्रिटेन-गर्व जो हरे,
विरक्त हो विमुक्त देश जो करे,
समाज किसलिए न देख हो दुखी,
कि उस महान
को खरीद
बंक ले।
2
स्वदेश बाग-डोर हाथ में लिए,
विशाल जन-समूह साथ में लिए,
कभी नहीं उचित कि हो अधोमुखी प्रवेश तुम
करो प्रमाद--
पंक में।
3
करो न व्यर्थ दाप, होशियार हो,
फला कभी न पाप, होशियार हो,
प्रसिद्ध है प्रकोप जन-जनार्दनी,
मिले तुम्हें न शाप होशियार हो,
तुम्हें कहीं
न राजमद
कलंक दे।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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