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1
अगर विभेद ऊँच-नीच का रहा,
अछूत-छूत भेद जाति ने सहा,
किया मनुष्य औ’ मनुष्य में फ़रक़,
स्वदेश की
कटी नहीं
कुहेलिका।
2
अगर चला फ़साद शंख-गाय का,
फ़साद संप्रदाय-संप्रदाय का,
उलट न हम सके अभी नया वरक़,
चढ़ी अभी
स्वदेश पर
पिशाचिका।
3
अगर अमीर वित्त में गड़े रहे,
अगर गरीब कीच में पड़े रहे,
हटा न दूर हम सके अभी नरक,
स्वदेश की
स्वतंत्रता,
मरीचिका।
अगर विभेद ऊँच-नीच का रहा,
अछूत-छूत भेद जाति ने सहा,
किया मनुष्य औ’ मनुष्य में फ़रक़,
स्वदेश की
कटी नहीं
कुहेलिका।
2
अगर चला फ़साद शंख-गाय का,
फ़साद संप्रदाय-संप्रदाय का,
उलट न हम सके अभी नया वरक़,
चढ़ी अभी
स्वदेश पर
पिशाचिका।
3
अगर अमीर वित्त में गड़े रहे,
अगर गरीब कीच में पड़े रहे,
हटा न दूर हम सके अभी नरक,
स्वदेश की
स्वतंत्रता,
मरीचिका।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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