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1
सुदूर शुभ्र स्वप्न सत्य आज है,
स्वदेश आज पा गया स्वराज है,
महाकृत्घन हम बिसार दें अगर
कि मोल कौन
आज का
गया चुका।
2
गिरा कि गर्व देश का तना रहे,
मरा कि मान देश का बना रहे,
जिसे खयाल था कि सिर कटे मगर
उसे न शत्रु
पांव में
सके झुका।
3
रुको प्रणाम इस ज़मीन को करो,
रुको सलाम इस ज़मीन को करो,
समस्त धर्म-तीर्थ इस ज़मीन पर
गिरा यहां
लहू किसी
शहीद का।
सुदूर शुभ्र स्वप्न सत्य आज है,
स्वदेश आज पा गया स्वराज है,
महाकृत्घन हम बिसार दें अगर
कि मोल कौन
आज का
गया चुका।
2
गिरा कि गर्व देश का तना रहे,
मरा कि मान देश का बना रहे,
जिसे खयाल था कि सिर कटे मगर
उसे न शत्रु
पांव में
सके झुका।
3
रुको प्रणाम इस ज़मीन को करो,
रुको सलाम इस ज़मीन को करो,
समस्त धर्म-तीर्थ इस ज़मीन पर
गिरा यहां
लहू किसी
शहीद का।
Harivansh Rai Bachchan Kavita
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कविता
धार के इधर उधर हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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