- Get link
- X
- Other Apps
Featured post
- Get link
- X
- Other Apps
अस्त जिस दिन हो गया
अपराह्न का वह सूर्य
छाया तिमिर चारों ओर,
पंछी चतुर्दिक से,
पंख आतुर,
हो इकट्ठा लगे करने शोर---
हर लिया क्यों गया
किरणों का अमित भण्डार,
वासर शेष,
संध्या दूर,
असमय रात,
दिन का चल रहा था दौर,
दिन का दौर !
दिन का दौर! !दिन का...
उस तिमिर में
एक फूटा सोत,
पानी लगा भरने ओ उभरने,
और ऊपर, और ऊपर, और ऊपर
लगा उठने ।
एक पारावार उमड़ा है
फफकता, क्षितिज छूता,
लक्ष-लक्ष पसार का लहरें उठाता,
जो उमड़तीं,
जो कि थोड़ी दूर बढ़तीं,
और गिरतीं, और मिटतीं;
पुन: उठतीं, पुन: बढ़तीं, पुन: मिटतीं
.
अपराह्न का वह सूर्य
छाया तिमिर चारों ओर,
पंछी चतुर्दिक से,
पंख आतुर,
हो इकट्ठा लगे करने शोर---
हर लिया क्यों गया
किरणों का अमित भण्डार,
वासर शेष,
संध्या दूर,
असमय रात,
दिन का चल रहा था दौर,
दिन का दौर !
दिन का दौर! !दिन का...
उस तिमिर में
एक फूटा सोत,
पानी लगा भरने ओ उभरने,
और ऊपर, और ऊपर, और ऊपर
लगा उठने ।
एक पारावार उमड़ा है
फफकता, क्षितिज छूता,
लक्ष-लक्ष पसार का लहरें उठाता,
जो उमड़तीं,
जो कि थोड़ी दूर बढ़तीं,
और गिरतीं, और मिटतीं;
पुन: उठतीं, पुन: बढ़तीं, पुन: मिटतीं
.
Harivansh Rai Bachchan Kavita
Hindi Kavita
Kavita
Poem
Poetry
कविता
दो चट्टानें हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment