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भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...
निकट, निकटतर, निकटतम
हुई चिता के अरथी, हाय,
बापू के जलने का भी अब, आँखें, देखो दृश्य दुसह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...
चंदन की शैया के ऊपर
लेटी है मिट्टी निरुपाय
लो अब लपटों से अभिभूषित चिता दहकती है दह-दह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...
अगणित भावों की झंझा में
खड़े देखते हैं हम असहाय
और किया भी क्या जाय,
क्षार-क्षार होती जाती है बापू की काया रह-रह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...
नैनं दहति पावक...
निकट, निकटतर, निकटतम
हुई चिता के अरथी, हाय,
बापू के जलने का भी अब, आँखें, देखो दृश्य दुसह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...
चंदन की शैया के ऊपर
लेटी है मिट्टी निरुपाय
लो अब लपटों से अभिभूषित चिता दहकती है दह-दह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...
अगणित भावों की झंझा में
खड़े देखते हैं हम असहाय
और किया भी क्या जाय,
क्षार-क्षार होती जाती है बापू की काया रह-रह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...
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सूत की माला हरिवंशराय बच्चन
हिंदी कविता
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